Saturday 16 October, 2021

 Garud Puran new Version

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Thursday 6 December, 2018

पुराणों में क्या लिखा है ? :पुराण हजारों वर्ष पहिले लिखे गए ग्रंथ हैं जिनकी संख्या 18 हैं ।सबसे छोटा पुराण 7 हज़ार श्लोकों वाला विष्णु पुराण तथा सबसे बड़ा 81000 श्लोक वाला स्कन्द पुराण है ।पुराणों को भारतीय ज्ञान कोष (इनसाइक्लोपीडिया) कहा जा सकता है जिनमें  अनन्त ज्ञान व दर्शन का भण्डार है। पुराणों में पाँच प्रकार के विषयों का वर्णन आता है-सर्ग (cosmogony), प्रतिसर्ग (secondary creations), मन्वंतर ,वंश तथा चरित-चित्रण।  महाभारत में आया है कि पुराणों में  जो नहीं वह इस पृथ्वी में नहीं। ये मानवता के मूल्यों की स्थापना से जुड़े भारतीय साहित्य, मनीषियों के चिंतन, मानव के उत्कर्ष व अपकर्ष की गाथाओं की  निधि हैं। पुराणों को धर्म , अर्थ, काम , मोक्ष प्रदान करने वाला बताया है।पुराणों में वैदिक ज्ञान को सहज तथा रोचक बनाने हेतु अद्भत कथाओं के माध्यम जनसामान्य तक पहुचाने का प्रयास हुआ है। इनका लक्ष्य मूल्यों की स्थापना भी है। पुराण वेदों पर आधारित हैं लेकिन वेदों में जहां  ब्रह्म के निर्गुण निराकार पहलू पर बल है वहीं पुराणों में सगुन साकार पर। पुराणों में पंच देव पूजा तथा अवतारों पर ध्यान दिया है। वस्तुतः आज का हिन्दू धर्म पुराणों के अधिक पास है।पुराणों की विषयवस्तु इतिहास, राजनीति, संस्कृति, कला, श्रृंगार, प्रेम , काव्य, हास्य , सृष्टि ,पाप- पुण्य ,तीर्थ , भक्ति , मोक्ष्य,स्वर्ग नरक , भूगोल, खगोल, विज्ञान आदि अनेक दैवीय एवं सांसारिक जीवन से जुड़े हैं। इनमें देवताओं, राजाओ और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथायें भी प्रचुर मात्रा में हैं जहां अनेक पहलूओं का चित्रण मिलता है।पुराण सार्वभौमिक तथा सर्व कल्याण की भावना लिए हैं।कुछ  पुराणों की एक से अधिक पांडुलिपियां भी मिली हैं जिनकी विषयवस्तु में  कुछ अंतर भी मिलता है। कुछ पुराणों में थोड़ी मिलावट भी हुई है जिसमें कुछ श्लोक बाद में जोड़ दिए गए हैं जो स्त्री , जाति जैसे सामाजिक  विषयों से जुड़े  हैं, वस्तुतः ये  मध्यकाल के समाज मे आये कतिपय पतन का द्योतक हैं क्योंकि ये श्लोक  वेद विमुख हैं, यह रोचक है कि पुराणों में उनके श्रुति अनुकूल होने की बात दोहराही गयी है। पुराणों में  दिए कुछ कथानक रहस्यमयी व लाक्षणिक हैं जिन्हें डीकोड करना होगा। स्मरणीय है कि पुराणों में पुरुष, पुत्र जैसे शब्द नारी व पुत्री को भी इंगित करते हैं, ये मानव व संतति के अर्थ में उपयुक्त हुए हैं।  अधिकतर पुराण  त्रिमूर्ति को समर्पित हैं लेकिन मत्स्य पुराण, कालिका पुराण, देवी पुराण, देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण जैसे महापुराण और उपपुराणों में भगवती दुर्गा का माहात्म्य व पूजा पद्धति आती है। प्रायः ब्रह्मा व शक्ति की उपासना वाले पुराणों को राजस, विष्णु वाले सात्विक तथा शिव भक्ति वाले पुराणों को तामस वर्ग का माना जाता है। सभी पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति 'ब्रह्म' से मानी है तथा जड को भी जीवन का अंश मानकर जड़-चेतन में परस्पर समन्वय स्थापित किया है जो वैदिक दृष्टि रही है।प्रायः सभी पुराणों की कथा कुछ इस प्रकार प्रारम्भ होती है: "एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में, व्यास जी के प्रमुख शिष्य ऋषि सूत जी ,जो बारह वर्ष चलने वाले सत्र में आये थे, से ऋषि शौनक तथा अन्य साठि हजार ऋषियों ने ज्ञान व भक्ति वर्धन हेतु कथा सुनाने का आग्रह किया। सूत जी ने व्यास से सुनी यह कथा ऋषियों को सुनाई ।" सभी पुराणों के अंत में श्रुति फल दिया है। सहज  संस्कृत श्लोकों में रचित इन पुराणों के अनुवाद अनेक भाषाओं में उपलब्ध हैं।पुराणों का पठन परम  कल्याणकारी  है और इन्हें शुद्ध  हृदय व श्रद्धा से पढ़ा ही जाए।  पुराणों में अनगिनत धारायें चलती हैं जिनमें अनेक आख्यान , सत्य कथायें , मिथक, कहानियों ,स्तुतियों के माध्यम से धर्म व सांसारिक बातें भी प्रस्तुत की गई हैं।पुराणों में  कथाओं के माध्यम से धर्मोपदेश प्रस्तुत किए गए हैं।  इनकी विषयवस्तु को केवल एक मोटे रूप में ही इंगित किया जा सकता है, जो इस प्रकार है:
1. ब्रह्म पुराण – इस पुराण में 'ब्रह्म' की सर्वोपरिता पर बल दिया है इसीलिए इसे  पुराणों में प्रथम स्थान प्राप्त है। यह कथात्मक ग्रँथ है। ब्रह्म पुराण में कथा वाचक ब्रह्माजी एवं श्रोता मरीचि ऋषि हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्म, सृष्टि की उत्पत्ति,  पृथु का पावन चरित्र, सूर्य एवं चन्द्रवंश का वर्णन, राम और कृष्ण रूप में  ब्रह्म के  अवतार की कथायें , देव- दानव , मनुष्य, जलादि  की उत्पत्ति, सूर्य की उपासना का महत्व, भारत का वर्णन, गंगा अवतरण, परहित का महत्व आदि का उल्लेख  है।
2. भागवत पुराण – भागवत पुराण बहुत विशेष है क्योंकि इसके ग्यारहवें स्कन्ध में गीता की तरह श्रीकृष्ण  द्वारा दिये उपदेश संकलित हैं,  इसीलिए इसे श्रीमद्भागवत भी कहते हैं।  भगवान्‌ कृष्ण की लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय कहलाता है।यह प्रेम व भक्ति रस प्रधान है तथा काव्यात्मक दृष्टि से यह अलौलिक है।  भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं और अनेक विद्वानों ने इसकी टीकाएँ लिखी हैं। यह कथा वाचकों में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ भी है । कर्म, भक्ति , साधना,  मर्यादा, द्वैत-अद्वैत,  निर्गुण-सगुण, ज्ञान, वैराग्य , कृष्णावतार की कथाओं तथा महाभारत काल से पूर्व के राजाओं, ऋषि मुनियों , सामान्य जन, सुर-असुरों की कथाओं, महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका  नगरी का जलमग्न होना, समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति, देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि की उत्पत्ति की कथा, कलियुग एवं कल्कि अवतार तथा पुनः सतयुग की स्थापना का इसमें वर्णन है।
 भागवत न पढ़ सकने वालों के लिए भगवान ने चार ऐसे श्लोक बताये हैं जिनके पाठ से पूरे भागवत पाठ का ज्ञान प्राप्त हो जाता है , इन्हें  चतुश्लोकी भागवत कहते हैं।

 3. मार्कण्डेय पुराण –अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा लेकिन अति लोकप्रिय  है। इस पुराण में ही  'दुर्गासप्तशती' जैसी अलौकिक  कथा एवं शक्ति का माहात्म्य बताने वाला ग्रंथ 'देवी चरित' निहित है। ये ग्रंथ नारी रूप में ब्रह्म का निरूपण करते हैं तथा मानव कल्याण का लक्ष्य लिए हैं। इसमें मदालसा की कथा , अत्रि, अनुसूया , दत्तात्रेय ,  हरिश्चन्द्र की मार्मिक व  करुणामयी कथा , पिता और पुत्र का आख्यान, नौ प्रकार की सृष्टि , वैवस्त मनु के वंश का वर्णन, नल,  पुरुरुवा, कुश, श्री राम आदि अनेकानेक कथाओं का संकलन है। इसमें  श्रीकृष्ण की बाल लीला, उनकी मथुरा द्वारका की लीलाएं, तीर्थो में स्नान का महत्व, पवित्र वस्तुओं व  लोगों का वर्णन तथा सत्पुरुषों को सुनने का महत्व तथा अन्य अनेक सुन्दर कथाओं का वर्णन  है।   इस ग्रंथ में सामाजिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक, भौतिक अनेक विषयों में विवेचन है तथा  न्याय और योग के विषय में ऋषि मार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं। इसमें भारतवर्ष का सुंदर वर्णन आया है। इस पुराण में संन्यास के बजाय गृहस्थ-धर्म की उपयोगिता पर बल दिया है। इसमें राष्ट्रभक्ति, त्याग , धनोपार्जन, पुरुषार्थ, पितरों और अतिथियों के प्रति कर्त्तव्यों का वर्णन है। इसमे करुणा से प्रेरित कर्म को पूजा-पाठ और जप-तप से श्रेष्ठ बताया गया है।पुराण में आया है कि जो  राजा या शासक अपनी  प्रजा  की रक्षा नहीं कर सकता, वह नरक जाएगा ।  इसमें योग साधना, इंद्रिय संयम , नशा, क्रोध व अहंकार  के दुष्परिणाम आदि भी बताए हैं।
4.विष्णु पुराण -  यह पुराणों में सबसे छोटा किन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन पुराण है जिसकी विशेषता इसकी तर्कपूर्णता है।  इसमें भारत देश , भूमण्डल का स्वरूप,  जम्बू द्वीप, पृथ्वी , ग्रह नक्षत्र,आकाश ,समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प, गृहस्थ धर्म, श्राद्ध-विधि, धर्म,ज्योतिष, देवर्षि के साथ ही   कृषि , चौदह विद्याओं , सप्त सागरों , अनेकों वँशों, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था ,श्री कृष्णा भक्ति का वर्णन है।  इसमें संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है। इसमें सम्राट पृथु की कथा भी आयी है जिस के नामपर हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा । इस पुराण में भूगोल के अतिरिक्त सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी है।
5. गरुड़ पुराण – गरुड़ पुराण सात्विक वर्ग का विष्णु पुराण है। इस पुराण में ऋषि सूत जी कहते हैं कि यह प्रसंग गरुड़ के प्रश्नों का जो उत्तर श्री विष्णु ने दिया उस पर आधारित  है।यह संसार की एकमात्र पुस्तक है जो  मृत्यु के पश्चात क्या होता है इसपर  पर आलोक डालती है। इसमें दाह संस्कार विधि ,प्रेत लोक, पाप, महापाप,पापिओं को नरक व  यम लोक की यातनाएं, विविध नरक, 84 लाख योनियों में कर्मानुसार शरीर उत्पत्ति, कर्मफल, पुनर्जन्म, दान, पाप पुण्य, धर्म-कर्म, परलोक, भयावह वैतरणी नदी, गोदान ,पिंडदान, गया श्राद्ध,  श्राद्ध, भव्य धर्मराज सभा, धर्मात्मा ,माया तृष्णा, प्रज्ञा ,मोक्ष्य आदि  का वर्णन  है। इस पुराण का वाचन प्रायः मृत्यु उपरांत होता है।पुराण का प्रारंभ जहां यममार्ग के वर्णन से होता है वहीं इसका अंत आत्मा, परमात्मा, मोक्ष्य जैसे गूढ़ दर्शन से।  (see Garud Puran by Hira Ballabh Joshi).

6. अग्नि पुराण – अग्नि पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कहा जाता है।  इसमें परा-अपरा विद्याओं के विविध विषयों का व्यापक वर्णन है। इसमें  कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद , आयुर्वेद मुख्य हैं। अग्नि पुराण में दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, भौतिक शास्त्र,औषधि समूह,तिथि , व्रत , नक्षत्र निर्णय , ज्योतिष,  मन्वन्तर, धर्म,  दान का माहात्म्य ,संध्या , गायत्री  , स्तुतियाँ, स्नान, पूजा विधि, होम विधि, मुद्राओं के लक्षण, वैष्णव, शिव, शक्ति के नाना पूजा विधान , 
मूर्तियों का परिमाण, मंदिर के निर्माण  व शिलान्यास की विधि, देवता की प्रतिष्ठा विधान  तथा उपासना , 
तीर्थ, मंत्रशास्त्र, वास्तुशास्त्र  ,राज्याभिषेक के मंत्र, राजाओं के धार्मिक कृत्य व कर्तव्य  , गज, गौ , अश्व , मानव आदि की चिकित्सा , रोगों की शान्ति, स्वप्न सम्बन्धी विचार ,  शकुन -अपशकुन  आदि का निरूपण,   देवासुर संग्राम कथा,  अस्त्र-शस्त्र  निर्माण तथा सैनिक शिक्षा पद्धति ,प्रलय,  योगशास्त्र, ब्रह्मज्ञान , काव्य , छंद, अलंकार, वशीकरण विद्या ,व्यवहार कुशलता, रस-अलंकार ,  ब्रह्मज्ञान, स्वर्ग-नरक , अर्थ शास्त्र, न्याय, मीमांसा, सूर्य वंश तथा सोम वंश, इक्ष्याकु वंश, प्रायश्चित,पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के लक्षण, रत्नपरीक्षा ,वास्तुलक्षण,  न्याय, व्याकरण, आयुर्वेद हेतु शरीर के अंगों का निरूपण ,योगशास्त्र , वेदान्तज्ञान, गीतासार , यमगीता, भागवत गीता, महाभारत, रामायण , मत्स्य, कूर्म आदि अवतार , सृष्टि, देवताओं के मन्त्र,अग्निपुराण का महात्म्य आदि विषयों का विवरण है।
7.पद्म पुराण - पद्म पुराण विशाल ग्रंथ है जो  पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टि, भूमि ,स्वर्ग, ब्रह्म , पाताल ,क्रिया योग तथा उत्तरखण्ड हैं। इस ग्रंथ में वर्णित पृथ्वी, आकाश, नक्षत्रों, चार प्रकार के जीवों( उदिभज, स्वेदज, अंडज तथा जरायुज) का वर्णन पूर्णतया वैज्ञानिक है।  चौरासी लाख योनियां कौन सी हैं, तुलसी , शालिग्राम व शंख को घर में रखने का वर्णन है, भीष्म द्वारा सृष्टि के विषय में पुलस्त्य से पूछे गए प्रश्न , व्रतों, पुष्कर आदि तीर्थ , कुआँ, सरोवर , भारत के पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तृत वर्णन है। योग और भक्ति , साकार की उपासना, मंदिर में निषिद्ध कर्म, सत्संग, वृक्ष्य रोपण विधि का भी वर्णन इसमे आया है।  इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के पूर्वजों का इतिहास है।भारत का नाम जिस भरत के नाम से पड़ा उनका इतिहास भी इसमें मिलता है। इसमें सृष्टि-रचयिता ब्रह्माजी का भगवान् नारायण की नाभि-कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी विवरण भी दिया है जिसके कारण इसका नाम पद्म पड़ा। इस ग्रंथ में ब्रह्मा जी की उपासना का वर्णन है। इसमें समुद्र मंथन , माता सती का देह त्याग जैसे संदर्भ भी आये हैं। इस पुराण की एक विशेषता है कि कई प्रसंगों व आख्यानों  को अन्य ग्रंथों से कुछ भिन्न रूप में प्रस्तुत किया गया है। कैसे कर्मफल भगवान को भी भोगना पड़ा उससे जुड़ी जालंधर राक्षस की कथा इसमें आई है।

8. शिव पुराण – शिव पुराण शैव मत का प्रतिपादन करता है जिसके अंदर आठ पवित्र संहिताएं आती हैं।   इसमें भगवान शिव की महिमा, लीला, ज्ञानपूर्ण कथाएं, पूजा-पद्धति दी गयी है। इस ग्रंथ को  वायु पुराण भी  कहते हैं। इसमें शिव के ऐश्वर्य , करुणा, अनुपम कल्याणकारी रूपों, शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप , अवतारों, अर्द्धनारीश्वर रूप तथा अष्टमूर्ति रूप का वर्णन है। इसमें शिव कथा सुनने हेतु उपवास आदि अनावश्यक माना है  साथ ही गरिष्ठ भोजन न करने को कहा है । ज्योतिर्लिंगों , कैलास, शिवलिंग, रुद्राक्ष , भस्म आदि का वर्णन और महत्व दर्शाया है। शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार , योग ,हवन, दान , मोक्ष्य,  माता पार्वती, श्री गणेश , कार्तिकेय ,देवी पार्वती की अद्भुत  लीलाओं, श्री  हनुमान तथा इसमें  वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं। इसमें  ओंकार ,  गायत्री, योग , शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञ,  जप का महत्व , शिव पुराण का महात्म्य आदि भी आया है।  इसमें आया है कि व्यक्ति अपने अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग पुनः धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में लगाए।

9. नारद पुराण -  यह पुराण  विष्णु के परम भक्त तथा अलौकिक प्रतिभाओं के धनी नारद मुनि के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है।नारद  वेदज्ञ, योगनिष्ठ, संगीतज्ञ, वैद्य, आचार्य व महाज्ञानी हैं। नारद पुराण के दो भाग हैं तथा इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का नाम दिया गया है।
इसमें ऋषि सूत  और शौनक का संवाद है जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, मंत्रोच्चार , पूजा के कर्मकांड, बारह महीनों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों की कथाएँ , अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान, गंगा अवतरण, एकादशी व्रत, ब्रह्मा के मानस पुत्रों -सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार -का नारद से संवाद का  अलौकिक वर्णन है।  इसमें कलयुग का वर्णन,श्री विष्णु के विविध  अवतारों की कथाएँ भी हैं। दूसरे भाग में  वेदों के छह अंगों  (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष) का वर्णन है। इसमें दण्ड-विधान  व गणित भी है। सूत जी से ऋषियों के पांच प्रश्न भी उत्तर सहित दिए हैं जो भक्ति, मोक्ष्य , अतिथि सत्कार कैसे हो , वर्णाश्रम आदि पर हैं।
यह पुराण विशेषतया संगीत के सातों स्वर, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं,  शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल के विषद वर्णन के लिए जाना जाता है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान अपने में सम्पूर्ण है और अनुपम है तथा यह आज भी भारतीय संगीत का आधार है। पाश्चात्य संगीत में बहुत बाद तक पांच स्वर होते थे जबकि नारद पुराण में हज़ारों वर्ष पहिले सात स्वर दिए हैं। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

10. भविष्य पुराण – भविष्य में होने वाली घटनाओं की सटीक भविष्यवाणियों  के कारण इसका नाम भविष्य पुराण पड़ा है। सूर्य की महिमा, स्वरूप, पूजा का विस्तृत वर्णन के चलते  इसे ‘सौर-पुराण’ भी कहते हैं। वर्ष के 12 महीने, सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधान , गर्भादान से लेकर उपनयन तक के संस्कार, विविध व्रत-उपवास, पंच महायज्ञ, वास्तु शिल्प, शिक्षा-प्रणाली , काल-गणना, युगों का विभाजन, सोलह-संस्कार, गायत्री जाप का महत्व, गुरूमहिमा,मन्दिरों के निर्माण , यज्ञ कुण्डों का वर्णन,
 पंच महायज्ञ, औषधियां, तथा अनेक अन्य  विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश का वर्णन भी है । इसी में प्रसिद्ध विक्रम-वेताल  कथा आयी है। जिसमें राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द , मौर्य , मुग़ल , छत्रपति शिवाजी तक का वृतान्त तथा इसमें जीसस क्राइस्ट के जन्म, उनकी भारत यात्रा, मुहम्मद साहब का आविर्भाव, महारानी विक्टोरिया का राज्यारोहण का वर्णन हजारों वर्ष पहिले ही कर दिया गया है। इसमें चतुर युग के राजवंशों का वर्णन, त्रेता युग के सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन , द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, कलि युग के  म्लेच्छ राजा, जीमूतवाहन और शंखचूड़ की प्रसिद्ध कथा आयी है।
 इस पुराण की रचना में ईरान से भारत आये  मग ब्राह्मण पुरोहितों की भूमिका रही है। इसमें जाति को जन्म आधारित नहीं माना है। यह पुराण राखी की कथा, सपनों का रहस्य जैसे अद्‍भुत एवं विलक्षण घटनाओं से भरा है ।विषय-वस्तु तथा काव्य-रचना शैली की दृष्टि से यह पुराण उच्चकोटि का है। लोकप्रिय सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है। यह पुराण भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण  स्त्रोत्र भी रहा है। इसमें हिन्दूकुश में  प्रसिद्ध शिव मंदिर का वर्णन है। माना जाता है कि इस पुराण का आधा भाग अभी मिल नहीं पाया है।

11. ब्रह्मवैवर्त पुराण –इस पुराण में श्री कृष्ण को परब्रह्म माना है ।  भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तुतियों से भरपूर  इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुलसी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं और उनकी पूजा का विधान दिया गया है।इसमें राधा के जन्म का वर्णन है।पुराण बताता है कि सृष्टि में असंख्य ब्रह्माण्ड विद्यमान हैं।  इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है लेकिन इस पुराण में श्री कृष्ण का चित्रण भागवत पुराण के सात्विक से भिन्न श्रृंगारिकता प्रधान है। इस पुराण में बताया है कि देवताओं की मूर्त‌ियों को तोड़ने वाले व्यक्त‌ि घोर नर्क में जाते हैं और इनको देखना या इनसे नाता रखने वाले भी नरकगामी होते हैं।

12. लिंग पुराण – यह शैव भक्ति का ग्रंथ है लेकिन इसमें ब्रह्म की एकरूपता का गंभीर विवेचन है। लिंग अर्थात शिवलिंग भगवान शंकर की ज्योति रूप चिन्मय शक्ति का चिन्ह अर्थात चैतन्य का प्रतीक  ।ब्रह्म का प्रतीक चिह्न है लिंग। शिव के तीन रूप हैं :अलिंग (अव्यक्त), लिंग ( व्यक्त) और लिगांलिंग (व्यक्ताव्यक्त) । पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति पंचभूतों से बताई है। इसमें युग, कल्प आदि की तालिका दी है। इस पुराण में राजा अम्बरीष की कथा,  उमा स्वयंवर, दक्ष-यज्ञ विध्वंस, त्रिपुर वध, शिव तांडव,अघोर विद्या व मंत्र , खगोल विद्या , सप्त द्वीप एवं भारत , पांच योग, पंच यज्ञ विधान, भस्म और स्नान विधि,  ज्योतिष चक्र,  सूर्य और चन्द्र वंश वर्णन, काशी माहात्म्य,  उपमन्यु चरित्र आदि अनेक आख्यान आये हैं।

13. वराह पुराण – अधर्म के चलते धरती का रसातल में डूबने एवं श्री विष्णु द्वारा वराह अवतार लेकर उसे  उबारने की कथा  इस पुराण में आती है। इसके अतिरिक्त , मत्स्य और कूर्मावतारों की कथा, गीता महात्म्य, त्रिशक्ति माहात्म्य, दुर्गा, गणपति, सूर्य, शिव कार्तिकेय, रुद्र, , ब्रह्मा,अग्निदेव, अश्विनीकुमार, गौरी, नाग, कुबेर, रुद्र, पितृगण, श्रीकृष्ण लीला क्षेत्र मथुरा और व्रज के  तीर्थों की महिमा , व्रत, यज्ञ, दान,  श्राद्ध,  गोदान , धर्म, कर्म फलों का वर्णन,श्री हरि का पूजा विधान,मूर्ति स्थापना के नियम तथा  पूजा करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाए, श्राद्ध कर्म एवं प्रायश्चित, शिव-पार्वती की कथाएँ,  मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति, जीव जंतु, त्रिदेवों की महिमा, चन्द्र की उत्पत्ति, देवी-देवताओं की तिथिवार उपासना , अगस्त्य गीता , रुद्रगीता, सृष्टि का विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोक, उत्तरायण तथा दक्षिणायण, अमावस्या और पूर्णमासी का महत्व, राक्षसों का संहार आदि। इस पुराण में अनेक ऐसे तथ्य आये हैं जो पश्चिमी  वैज्ञानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही ज्ञात हो सके। दुर्भाग्य से इस ग्रंथ का बड़ा भाग खो चुका है। यह वैष्णव पुराण है लेकिन इसमें शिव व शक्ति की उपासना भी हुई है।
14. स्कन्द पुराण - कार्तिकेय  का नाम स्कन्द है। इस विशाल पुराण में छः खण्ड हैं। इसमें शिवतत्व के वर्णन के साथ विष्णु व राम की महिमा दी है जिसे तुलसीदास ने मानस में स्थान दिया । इसमें विष्णु को शिव का ही रूप बताया गया है। इसमें सत्यनारायण  कथा सहित अनगिनत प्रेरक कथाएं आयी हैं जो ज्ञान वर्धक हैं तथा  सत चरित्र उभारती हैं। स्कन्द पुराण में  27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल का  सौंदर्य, सह्याद्रि पर्वत, कन्या कुमारी , लिंग प्रतिष्ठा वर्णन, 12 ज्योतिर्लिंग सहित भारत का भूगोल, शैव और वैष्णव आदि  मत , मोक्षयदायी तीर्थों के माहात्म्य, तीर्थराज प्रयाग,उज्जैन, पुरी,  अयोध्या, मथुरा, कुरुक्षेत्र, सेतुबंध तथा रामेश्वर, गंगा, यमुना , नर्मदा,विविध सरोवर, सदाचरण व दुराचरण आदि अनगिनत विषयों का विवरण मिलता है।  आज के हिंदुओं में प्रचलित वृत, त्यौहार, तिथियों , श्रावण मास आदि का महत्व, यात्रा वृतांत,  भक्ति आदि में इस पुराण का भारी प्रभाव है। इसमें गौतम बुद्ध का विस्तृत वर्णन है और उन्हें विष्णु का अवतार माना गया है। इसमें आता है कि  ये 8 बातें हर किसी के लिए अनिर्वाय हैं: सत्य, क्षमा, सरलता, ध्यान, क्रूरता का अभाव, हिंसा का त्याग, मन और इन्द्रियों पर संयम, सदैव  प्रसन्न रहना, मधुर व्यवहार करना और सबके लिए अच्छा भाव रखना।

15. वामन पुराण - इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलबद्ध है। इस पुराण में श्री विष्णु के वामन अवतार की कथा आयी है लेकिन वस्तुतः यह शिव कथा पर आख्यान है तथा इसमें भगवती को भी समान महत्व मिला है । इस ग्रंथ में भगवती दुर्गा के विविध स्वरूपों,  ब्रह्मा जी की कथा,लक्ष्मी-चरित्र, कूर्म अवतार, गणेश, कार्तिकेयन,  शिवपार्वती विवाह , शिव लीला एवं चरित्र, दक्ष-यज्ञ,भक्त प्रह्लाद तथा श्रीदामा से जुड़े मनोरम  आख्यान, कामदेव-दहन, जीवमूत वाहन आख्यान, सृष्टि, सात द्वीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी एवं भारत की भूगौलिक स्थिति,  पर्वत, नदी ,व्रत व स्तोत्र भी आये हैं।

16. कूर्म पुराण - कूर्म पुराण में चारों वेदों का संक्षिप्त सार दिया है। इसमें  कूर्म अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक दी गयी है। इसमें ईश्वर गीता, व्यास गीता, शिव के अवतारों का वर्णन ,श्रीकृष्ण ,ब्रह्मा, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, काशी व प्रयाग क्षेत्र का महात्म्य, अनुसूया की संतति वर्णन, योगशास्त्र ,चारों युगों का स्वभाव, सृष्टि के प्रकार व युगधर्म , मोक्ष के साधन, वैवस्तव मन्वतर के २८ द्वापर युगों के २८ व्यासों का उल्लेख, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति आदि आते हैं। इसमें वैष्णव, शैव, एवं शाक्त में एक्य दिखाया है।मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है। इसमें नटराज शिव के विश्व रूप का वर्णन, नृसिंह अवतार, गायत्री,निष्काम कर्म योग , नौ प्रकार की सृष्टियां , भगवान के रूपों तथा नामों की महिमा, पंच विकार , सभी के प्रति समदृष्टि, सगुन और निर्गुण ब्रह्म की उपासना, स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में जाने का वर्णन, सांख्य योग के चौबीस तत्त्व,  सामाजिक नियम, पितृकर्म, श्राद्ध, पिण्डदान विधियां, चारों आश्रमों के आचार-विचार , सदाचार ,विविध संस्कार आदि वर्णित हैं। दुर्भाग्य से पुराण का कुछ भाग आज उपलब्ध नहीं है।

17. मत्स्य पुराण – इसमें मत्स्य अवतार की कथा , एक छोटी मछली की कथा, मत्स्य व मनु के बीच  संवाद,  ब्रह्माण्ड का वर्णन , सृष्टि की उत्पत्ति, जल प्रलय, सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों ,लोकों का वर्णन, ब्रह्मा  की उत्पत्ति, नृसिंह वर्णन, असुरों की उत्पत्ति, अंधकासुर वध, चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन,  राजधर्म,सुशासन, कच, देवयानी, शर्मिष्ठा, सावित्री कथा तथा राजा ययाति की रोचक कथायें ,  मूर्ति निर्माण माहात्म्य,मन्दिर व भवन  निर्माण, शिल्पशास्त्र, चित्र कला, गृह निर्माण, शकुनशास्त्र, पुरुषार्थ ,  कृष्णाष्टमी, गौरी तृतीया, अक्षय तृतीया आदि व्रतों का वर्णन,संक्रांति स्नान ,नित्य, नैमित्तिक व काम्य  तीन प्रकार के श्राद्ध, दान,तीर्थयात्रा,काशी, नर्मदा, कैलास वर्णन, प्रयाग महात्म्य, शिव-गौरी प्रसंग, सपनों का विश्लेषण, प्रलय, योग ,यज्ञ, वृक्ष्या रोपण का महत्व आदि ।इस पुराण में आया है कि श्री गणेश का जन्म  हाथी की गरदन के साथ हुआ था अर्थात शिव द्वारा सिर बदलने का वृतांत नहीं है।

18. ब्रह्माण्ड पुराण - यह  ब्रह्माण्ड की स्थित , ग्रहों नक्षेत्रों की गति, सप्तऋषि ,आकाशीय पिण्डों, पृथ्वी , भारत का भूगोल आदि विवरण के चलते इस पुराण को   विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र भी कहते हैं।इसमें भारत को कर्मभूमि कहकर संबोधित किया गया है। यह उच्च कोटि का ग्रंथ है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक के  सात मनोवन्तरों का वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है।   यह भविष्य में होने वाले मनुओं  की कथा,अनेकों ऋषि मुनियों, देवताओं,  सामान्य जनों ,परशुराम ,सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं के इतिहास  व गाथाओं से भरा है।
इसमें राजा सगर का वंश , भगीरथ द्वारा गंगा की उपासना, त्रिपुर सुन्दरी ( ललितोपाख्यान) ,भंडासुर विनाश आदि अनगिनत आख्यान निहित हैं।    हीरा बल्लभ जोशी